मानव जीवन में, समय, परिस्थिति और स्थान बड़ी भूमिका अदा करते हैं। कई बार जो कुछ भी घटित होता है उसी के अनुरूप परिस्थितियां बनती चली जाती है। कलयुग में एक ही चक्रवर्ती सम्राट हुए राजा विक्रमादित्य। जिनके नाम से ही संपूर्ण भारतवर्ष में विक्रम संवत की शुरुआत हुई।
विक्रमादित्य एक बहुत ही पराक्रमी, विद्वान, प्रजापालक तथा परोपकारी राजा थे। राजा विक्रमादित्य अपनी प्रजा को अपने पुत्र के समान प्यार करते थे, तथा रात्रि के समय में वे रूप बदलकर प्रजा के हालात जानने के लिए तथा कुशलता जानने के लिए नगर का भ्रमण करते थे।
एक बार राजा विक्रमादित्य रूप बदलकर देर रात्रि में नगर के भ्रमण के लिए निकले। भ्रमण करते करते अमृतवेला का समय हो गया। उनके पैर फटने लगे भोर की इस समय राजा विक्रमादित्य नगर की परिक्रमा वाले मार्ग से गुजर रहे थे। मार्ग की दूसरी तरफ घना जंगल आरंभ हो जाता है। एकाएक राजा देखते हैं कि एक लकड़हारा कंधे पर कुल्हाड़ी लिए हुए जंगल में जा रहा है।
लकड़ी काटने के लिए एक ऊंचे वृक्ष पर चढ़ गया है। और उसी समय राजा विक्रमादित्य ने देखा, कि एक भयानक भालू उसी वृक्ष की तरफ दौड़ा चला आ रहा है, और उसी वृक्ष पर चढ़ने लगता है, वृक्ष पर भालू को चढ़ता देख राजा को बड़ा ही आश्चर्य होता है,क्योंकि भालू तो वृक्ष पर कभी चल नहीं सकता। उस समय नौजवान लकड़हारे ने जब भालू को अपनी ओर आते देखा तो उसके हाथ और पांव फूल गए।
काल और राजा विक्रमादित्य 2024
भय के कारण उसके हाथ से वृक्ष की टहनी छूट गई और वहां धरती पर जा गिरा। और मृत्यु को प्राप्त हुआ। तब भालू पेड़ से नीचे उतरा और, राजा के देखते ही देखते उसने एक सुंदर लड़की का रूप धारण कर लिया।और जंगल के समीप जाकर एक कुएं की मुंडेर पर बैठ गई।
राजा दूर खड़े होकर यह सभी नजारा देख रहे थे और सोच रहे थे कि यह लड़की बना हुआ भालू अब क्या करेगा। थोड़ी ही देर में राजा के दो सिपाही जो रात्रि गश्त पर थे उधर आ गए। इत्तेफाक से दोनों सिपाही सगे भाई थे इनमें से छोटे भाई की नजर हुए पर बैठी सुंदर लड़की पर पड़ी, तो वहां बड़े भाई से बोला कि, कितनी सुंदर लड़की है मैं इसी से विवाह करूंगा।
बड़ा भाई बोला, बड़े भाई की होते हुए छोटा भाई कैसे विवाह कर सकता है बड़ा होने के नाते, सबसे पहले विवाह मैं करूंगा, तब छोटा भाई बोला इसे पहले मैंने देखा है, इसलिए इससे विवाह तो मैं ही कर लूंगा।
तब बड़ा भाई बोला कि हम तो व्यर्थ ही झगड़ रहे हैं। क्यों ना हम इस लड़की से ही पूछ ले यह हम दोनों में से जिसे पसंद करेगी, वही इस लड़की से विवाह कर लेगा।
इस प्रकार दोनों भाई आपस में निर्णय करके, लड़की के पास पहुंचे बड़े भाई ने उस लड़की से प्रश्न किया, हे सुंदरी आप कौन हो और यहां क्या कर रही हो, वह लड़की बोली, मैं पास ही एक गांव में रहती हूं, और अपने पति की तलाश में निकली हूं, छोटा भाई बोला, तुम्हारा पति कहां है, तुम चाहो तो उसे ढूंढने में हम तुम्हारी मदद कर सकते हैं, तब वह लड़की बोली, अभी तो मैं कुंवारी हूं, और किसी योग्य वर की तलाश में निकली हूं।
तब छोटा भाई बोला हम दोनों भाई भी अभी कुंवारे हैं, यदि तुम चाहो तो हम में से किसी एक से विवाह कर सकती हो, लड़की बोली, मैं तुम दोनों में से एक से विवाह कर लूंगी परंतु, मेरी एक शर्त है, दोनों भाई बोले, क्या शर्त है तुम्हारी, लड़की बोली, तुम दोनों में से जो भी अधिक बहादुर होगा मैं उसी से विवाह करूंगी, इतना सुनते ही दोनों भाई स्वयं को एक दूसरे से श्रेष्ठ सिद्ध करने की इच्छा रखते हुए, आपस में युद्ध लड़ने लगे, दोनों भाइयों ने अपनी-अपनी तलवारे निकाली और एक दूसरे के पेट में आर पार कर दी,,और तड़प तड़प कर दोनों भाइयों की जान चली गई।
Raja Vikramaditya Aur Kal ki kahani
तब वहां दोनों भाइयों पर जोर जोर से हंसी और उठकर एक दूसरी दिशा की तरफ चल पड़ी, विक्रमादित्य सोचने लगे कि यह लड़की एक छलावा है अब क्या करेगी। ऐसा सोचते सोचते राजा विक्रमादित्य भी उस लड़की से थोड़ी दूरी रखते हुए उसके पीछे चलने लगे। अब सुबह का समय हो चुका था और सूर्य भगवान भी अपना पूर्ण रूप लेकर प्रकट हो चुके थे। लेकिन राजा विक्रमादित्य एक भालू के वृक्ष पर चढ़ने, और फिर एक सुंदर लड़की का रूप धारण करने, की विचित्र घटना को अपनी आंखों से देख कर सुध बुध खो बैठे थे।
अब उन्हें राजपाट, भूख, प्यास, के बारे में कुछ भी ध्यान ना रहता। उनमें केवल उस रहस्यमई सुंदर लड़की के विषय में जानने की जिज्ञासा थी। अतः राजा विक्रमादित्य उस लड़की से उचित दूरी बनाकर पीछा करने लगे। पीछा करते-करते वे लगभग दो सौ कदम आगे चलने के बाद, राजा विक्रमादित्य के विस्मय की सीमा न रही, क्योंकि राजा विक्रमादित्य ने उस लड़की को भालू से एक सुंदर लड़की का रूप धारण करते हुए देखा था।
वह लड़की अब एकाएक एक जहरीले नाग का रूप धारण कर चुकी थी। वहां जहरीला नाग अब बड़ी ही तेजी से आगे बढ़ने लगा, कुछ दूर आगे एक नदी के पास पहुंचे, और राजा के देखते ही देखते वह नाग उस नदी में कूद पड़ा। नदी में एक नाव चल रही थी जिसमें 30 35 लोग सवार थे। अब वहां जहरीला नाग उस नाव की तरफ आगे बढ़ने लगा।सम्राट विक्रमादित्य किनारे पर खड़े होकर यहां सब नजारा देख रहे थे।
देखते ही देखते वहां जहरीला नाग उस नाव में कूद पड़ा। जैसे ही नाव में बैठे सभी लोगों ने उस नाक को देखा नाव, में भगदड़ मच गई, और सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए पानी में कूद पड़े।जो लोग तैरना जानते उन सभी लोगों ने तैर कर अपनी जान बचा ली, और नदी के बाहर निकल गए।
जो लोग तैरना नहीं जानते थे, वे लोग पानी में डूब गए और मर गए। आप वहां ना नदी से बाहर निकला, और नदी के किनारे-किनारे आगे बढ़ने लगा। सम्राट विक्रमादित्य भी उसके पीछे पीछे आगे बढ़ने लगे।कुछ दूर आगे जाने के बाद, एक बार फिर से राजा विक्रमादित्य आश्चर्यचकित हो गए, क्योंकि उस नाक ने फिर से एक बार अपना रूप बदल लिया था।
आप उस नाग ने एक ब्राह्मण का रूप धारण कर लिया था। राजा विक्रमादित्य ने सोचा कि इस रहस्यमई प्राणी के विषय में जानकारी लेने का अब उचित अवसर है। क्योंकि अब यहां एक निर्बल वृद्ध ब्राह्मण के रूप में है, इसके बारे में सुगमता से पूछ सकता हूं। यह सोचकर राजा विक्रमादित्य, उस ब्राह्मण की तरफ बढ़ने लगे। अब राजा विक्रमादित्य बड़े ही तेजी के साथ चलते-चलते उस वृद्ध ब्राह्मण के पास पहुंच गए, और उसे हाथ जोड़कर प्रणाम किया, वृद्ध ब्राह्मण ने भी हाथ उठाकर अभिवादन स्वीकार किया।
राजा विक्रमादित्य ने उस वृद्ध ब्राह्मण से प्रश्न किया, आप कौन हैं, तो वह ब्राह्मण बोला तुम्हें दिखाई नहीं देता, मैं ब्राह्मण हूं, राजा बोला, आप असत्य बोल रहे हो आप ब्राह्मण तो नहीं हो, वह बोला, तो तुम ही बता दो मैं कौन हूं, राजा बोला तुम वह नहीं हो जो नजर आ रहे हो, वह बोला, तुम्हें इससे क्या लेना, देना तुम अपने काम से काम रखो, और अपना रास्ता नापो।
राजा बोला, मैं सच्चाई जाने बिना आपका पीछा नहीं छोडूंगा। आपको सच्चाई बतानी ही पड़ेगी। वह बोला, मैंने तुम्हें बताया तो मैं एक ब्राह्मण हूं राजा बोला, आप मुझसे झूठ नहीं बोल सकते, मैं आपका तब से पीछा कर रहा हूं जब से आप भालू बने हुए थे। उस समय आपने उस नौजवान लकड़हारे को मारा।
फिर आपने एक सुंदर लड़की का रूप धारण किया, और दोनों सिपाही जो सगे भाई थे उन्हें एक दूसरे के हाथ मरवा दिया। फिर आपने एक नाक का रूप धारण किया, और नदी पार कर रहे नाव में बैठे यात्रियों को आपने नदी में कूदने पर विवश किया और उसे मारे गए। अब आपने एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण किया है, अब सीधी तरह से सच-सच बता दो आप कौन हो।
वह बोला, यदि नहीं बताऊं तो, यह सुनकर राजा ने अपनी तलवार निकाल ली, और बोले तो फिर मरने के लिए तैयार हो जाओ। ,तुम जानते नहीं यह राजा विक्रमादित्य की नगरी है, और मैं राजा का वफादार नौकर हूं। अब मरने से पहले जल्दी से बता दो कि तुम कौन हो।
राजा विक्रमादित्य की यह धमकी सुनकर, वह वृद्ध ब्राह्मण जोर-जोर से खिलखिला कर हंस पड़ा, और बोला मैं जानता हूं, कि यहां महा प्रतापी सम्राट विक्रमादित्य की राजधानी है, और मैं यह भी जानता हूं कि तुम ही विश्व प्रसिद्ध सम्राट विक्रमादित्य हो। फिर भी एक बात जान लो, तुम मुझे नहीं मार सकते, बल्कि एक दिन ऐसा आएगा कि मैं तुम्हें ही मरने के लिए विवश कर दूंगा।
उसकी यह बात सुनकर राजा विक्रमादित्य सोचने लगे, कि जिसने इस रूप में भी मुझे पहचान लिया वह कोई साधारण इंसान तो नहीं हो सकता, तो राजा थोड़े विनम्र होकर बोले अब आपने मुझे पहचान ही लिया है तो, कृपा कर बताइए कि आप वास्तव में कौन है।
तब वह ब्राह्मण बोला, किसी ने सच ही कहा है कि, संसार में चार प्रकार के हट प्रसिद्ध है, राजा के, बाल हट, त्रिय हट और योग हट। तुम राजा हो राज हट पर अड़े हो, बिना मेरी सच्चाई जाने तुम मानोगे नहीं, इसलिए मुझे बताना ही पड़ेगा, कि मैं कौन हूं।
अतः राजन अब ध्यान लगाकर सुनो कि मैं कौन हूं, और तुम्हारी राजधानी में क्यों आया हूं। आप उस ब्राह्मण ने बताना शुरू किया है, हे राजन मैं तुम्हें बताता हूं कि मैं कौन हूं, जो भी मैं बताऊंगा एक-एक शब्द ध्यान लगाकर सुनना। मेरा नाम काल है, तुम जानते हो कि इस संसार में जितने भी प्राणी जन्म लेते हैं, उनकी मृत्यु निश्चित है।
इसलिए इस भूमि को मृत्यु लोग भी कहा जाता है। जब प्राणी माता के गर्भ में आता है, उसके संपूर्ण अंग बनने के बाद,उसमें आत्मा प्रवेश करती है, अर्थात वह सजीव हो जाता है। उसी समय उसकी मृत्यु का समय स्थान और परिस्थिति, मृत्यु किस प्रकार होगी यह सभी बातें विधाता की तरफ से निश्चित कर दी जाती है, और राजन तुम यह भी जानते हो कि सभी प्राणियों का मृत्यु का लेखा-जोखा चित्रगुप्त के पास रहता है।।
जब किसी प्राणी की मृत्यु का समय आ जाता है तो वहां धर्मराज को सूचित करते हैं, अब सब की मुक्ति अर्थात मृत्यु का समय यह विभाग भगवान शिव के पास है, अतः धर्मराज उस प्राणी को मृत्यु प्रदान करने की आज्ञा भगवान शिव से मांगते हैं। जब भगवान शिव आज्ञा दे देते हैं, तो धर्मराज मुझे, अर्थात काल को आज्ञा देते हैं।
तब मैं मृत्यु लोग अथवा पृथ्वी पर आता हूं, मुझे यह पता होता है, कि किस प्राणी की किस समय किस स्थान पर और किस स्थिति में मृत्यु होगी, मैं उन प्राणी को निश्चित समय पर लेकर जाता हूं, अथवा पहुंचा देता हूं, जहां उसकी मृत्यु लिखी हुई है, अथवा निश्चित है और किस प्रकार से उसकी मृत्यु लिखी गई है, मैं उस स्थान पर वैसे ही परिस्थितियां अथवा हालात बना देता हूं।
उस लकड़हारे को मैंने नहीं मारा, राजा विक्रमादित्य बोले तुम फिर झूठ बोल रहे हो, मैंने स्वयं अपनी आंखों से देखा है कि उस लकड़हारे की मृत्यु का कारण तुम ही थे, वृहद ब्राह्मण बोला बेशक कारण मैं बना था, लेकिन सांसारिक लोग तो यही समझते हैं कि लकड़हारे की मृत्यु वृक्ष से गिरकर रक्षिका टहनी टूटने के कारण हुई है। और फिर मुझे तो मृत्यु देव धर्मराज के आदेश का पालन करना ही पड़ता है।
उसकी मृत्यु वृक्ष से गिरने के कारण लिखी गई थी, इसलिए मैंने भालू बनकर वैसी ही परिस्थितियां वा हालात पैदा कर दिए, नहीं तो जरा सोचो यदि असली भालू होता तो क्या कभी पेड़ पर चढ़ता कदापि नहीं। परंतु वहां तो मैं था और मेरे लिए कुछ भी असंभव नहीं है।
अगर उन सिपाहियों की बात करें तो उनको भी मैंने नहीं मारा उनकी मृत्यु एक दूसरे के हाथों लिखी थी। अतः उनके लिए मुझे एक सुंदर लड़की बनना पड़ा। नाव में सवार लोगों की मृत्यु पानी में डूबने से लिखी थी, इसके लिए मुझे भयानक नाक का रूप धारण करना पड़ा, राजन मुझे लगता है, कि आप तो आप अच्छी तरह समझ गए होंगे, कि मैं कौन हूं, और तुम्हारी नगरी में क्यों आया था।
और यह भी समझ गए होंगे, कि समय स्थान और परिस्थिति कि, सांसारिक प्राणी के जीवन में कितनी बड़ी भूमिका होती है। राजा विक्रमादित्य के वृद्ध ब्राह्मण रूपी काल की बातें बड़े ध्यान से सुने। और गंभीर हो गए कॉल कहने लगा है। राजन अब मैं चलता हूं।राजन बोले, हे कालदेव आपने मुझे बहुत अच्छी जानकारी दी है, जिसके लिए मैं आपका बहुत आभार व्यक्त करता हूं, कृपया जाने से पहले मेरे एक और प्रश्न का उत्तर देते जाइए।
कॉल देव बोले, पूछो क्या पूछना है। शीघ्र पूछो मेरे पास समय नहीं है। राजा विक्रमादित्य बोले कृपा करके मुझे यह बताइए कि मेरी मृत्यु किस समय, पर और किस प्रकार से होगी, कालदेव बोले हैं, राजन मैं यह तो बता सकता हूं कि, तुम्हारी मृत्यु कहां और किस प्रकार से होगी, परंतु यह नहीं बता सकता कि तुम्हारी मृत्यु कब होगी, राजा विक्रमादित्य बोले हे, कालदेव मृत्यु का समय बताने में आपको क्या आपत्ति है।
कालदेव बोले हे राजन यदि मैं पहले ही आपको मृत्यु का समय बता दिया तो इसी क्षण से आप चिंता ग्रस्त हो जाओगे और आप तो जानते हो की चिंता और चिता दोनों में कोई अंतर नहीं है, अभी तो आपको अपने शासनकाल में बहुत से शुभ और जन कल्याण के कार्य करने हैं।
राजा विक्रमादित्य बोले चलो समय ना कहीं यह तो बता दो कि मेरी मृत्यु कहां और कैसे होंगी कालदेव बोले सुनो राजन तुम्हारी मृत्यु तुम्हारे ही महल में सीढ़ियों से पांव फिसलने से गिरने के कारण होगी। इतनी बात सम्राट विक्रमादित्य को बताकर वह ब्राह्मण रूपी काल शीघ्रता से एक दिशा की ओर आगे चल पड़े और कुछ दूर जाकर विलुप्त हो गए।
अब इस समय सूर्य भगवान भी पूर्ण रूप से अस्त हो चुके थे, चारों तरफ अंधकार छा गया था। राजा विक्रमादित्य अब तक शारीरिक और मानसिक रूप से थक चुके थे। अतः मन में गहन सोच-विचार के लिए तेज तेज कदमो से अपने महल की ओर प्रस्थान करने लगे।
जय श्री कृष्णाण् राधे राधे।
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