Surdas ka Jivan Parichay | Surdas Biography In Hindi | Surdas ka jivan Parichay Hindi me | Surdas poem in Hindi | Surdas ke pad in Hindi | Surdas story in Hindi | Surdas death date सूरदास जीवन परिचय
Surdas Biography in Hindi
जीवन परिचय -सूरदास जी का जन्म मथुरा के समीप स्थित एक गांव में हुआ जिसका नाम रुनकता थासूरदास जी का गांव आगरा से मथुरा जाने वाले राजमार्ग पर स्थित था
सूरदास का जन्म सन 1478 में हुआ इनके पिता का नाम रामदास था
लेकिन सूरदास को चाहने वाले कुछ अन्य विद्वान इनका जन्म स्थान दिल्ली के समीप सीही नामक स्थान को मानते हैं महाप्रभु वल्लभाचार्य सूरदास की प्रतिभा से बहुत अधिक प्रभावित थे और इन्होंने इनकी नियुक्ति श्रीनाथ मंदिर मैं कर दी थी
महाप्रभु वल्लभाचार्य के 1 पुत्र थे जिनका नाम विट्ठलनाथ था जिनके द्वारा अष्टछाप की रचना की गई थी जिसमें सूरदास को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ था
सूरदास जी का संपूर्ण जीवन गऊघाट पर रहते हुए बीता यहां पर इन्होंने श्रीमद्भागवत के आधार पर श्री कृष्ण लीला से संबंधित पदों की रचना की और गायन करते थे सूरदास का गायन बहुत ही मधुर और सुरीला था
Surdas ka Jivan Parichay 2021
महाकवि सूरदास जी का जन्म अभी तक विवाद में है कुछ लोग इनका जन्म स्थान किसी और क्षेत्र को बताते हैं और कुछ लोग किसी अन्य क्षेत्र को सूरदास के द्वारा लिखी गई रचनाएं में उनका जन्म जो किसी उच्च जाति को नहीं दर्शाता
सूरदास जन्म से अंधे थे या नहीं थे इस बारे में कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं लेकिन ऐसा माना जाता है कि सूरदास जन्म से अंधे थे और श्री कृष्ण बाल मनोवृत्ति और मानव स्वभाव का जिस प्रकार सूरदास ने वर्णन किया है इस प्रकार वर्णन कोई अंधा व्यक्ति नहीं कर सकता
इसलिए यह माना जाता है कि सूरदास जन्म से अंधे नहीं थे जन्म होने के बाद वे अंधे हुए सूरदास ने श्रृंगार और रूप रंग आदि के बारे में अपनी रचनाओं में वर्णन किया है
ऐसा माना जाता है कि सूरदास किसी स्त्री से प्रेम करते थे लेकिन उनकी प्रेम कहानी में बाधा आने के कारण उन्होंने अपनी दोनों आंखें स्वयं ही 4 ली थी लेकिन वे जन्म से अंधे नहीं थे
Surdas की मृत्यु
Surdas की मृत्यु सन 1583 में हुई थी सूरदास जी की मृत्यु मथुरा के समीप एक गांव पारसोली मैं हुई थी और इनका निधन गोस्वामी विट्ठलनाथ की उपस्थिति में हुआ था ऐसा माना जाता है और इनकी मृत्यु के समय सूरदास अपने तानपुरे पर खंजन नैन रूप रस माते पद का गायन कर रहे थे
सूरदास साहित्य सेवा
Surdas को हिंदी काव्य का सूर्य कहा जाता था सूरदास ने अपने कार्य कौशल से हिंदी साहित्य में अच्छा योगदान दिया सूरदास के गुरु वल्लभाचार्य थे और सूरदास अपने गुरु वल्लभाचार्य के संपर्क में आने के बाद इन्होंने वल्लभाचार्य से पुष्टिमार्ग की दीक्षा ग्रहण की यहीं से इन्होंने दास्य भाव और दैन्य भाव जैसे पदों की रचना करना छोड़ दिया और इसके बाद इन्होंने वात्सल्य प्रधान शाखा भाव के पदों की रचना शुरू कर दी सूरदास को अष्टछाप कवियों में उच्च स्थान प्राप्त था
सूरदास की रचनाओं में इनका मुख्य उद्देश्य कृष्ण भक्ति का प्रचार प्रसार करना और संगीतकारों में भक्ति रस में इनके मन को बहुत आकर्षित किया था
सूरदास की प्रमुख रचनाएं
- सूरसागर सुरसारावली साहित्य लहरी सूरदास की प्रमुख रचनाएं हैं जिनका श्रजन सूरदास के द्वारा किया गया
- Surdas की सूरसागर एक अमर कृति है जिसमें इन्होंने भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया है
- सूरदास के द्वारा रचित सुरसा अरावली मे 1107 छंद शामिल किए गए हैं सूरसागर एक ग्रंथ है
- साहित्य लहरी के अंतर्गत 1800 पदों को संग्रहित किया गया है जिसमें रस की श्रेष्ठ था है
सूरदास भाव पक्ष
Surdas के भाव पक्ष में भक्ति भाव, भावुकता और उत्कृष्ट भाव वात्सल्य रस और सिंगार रस का वर्णन देखने के लिए मिलता है
भक्ति भाव– सूरदास का संपूर्ण जीवन कृष्ण की भक्ति में गुजरा है और यह एक भक्ति भाव के कवि थे कृष्ण भक्ति को शाखा मानकर ही इन्होंने अपनी रचनाओं में कृष्ण की बाल लीला और प्रेम लीलाओं का वर्णन किया है
सूरदास श्रंगार रस– बस में सूरदास ने अपनी दो रचना वियोग श्रृंगार और संयोग श्रृंगार का वर्णन किया है तथा चित्रण किया है
सूरदास कला पक्ष
Surdas ब्रज भाषा का प्रयोग करते थे और साधारण बोलचाल की भाषा में भी यह ब्रजभाषा का प्रयोग करते थे सूरदास के द्वारा बोली जाने वाली भाषा सरल और अत्यंत प्रभावी थी जिसमें भाव प्रकाशन की क्षमता का आभास होता है
सूरदास साहित्य में स्थान- सूरदास ब्रजभाषा के श्रेष्ठतम कवियों में से एक थे बाल प्रकृति चित्रण और वात्सल्य रस सिंगार रस इनकी रचनाओं में देखने को मिलता है सूरदास का क्षेत्र सीमित है |
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