मीराबाई का जीवन परिचय | Meera Bai Biography in Hindi | Mira bai ka jeevan Parichay Hindi mein | meera bai ka janm sthan | Meera bai ki rachnaye
Meera Bai Biography in Hindi
- मीराबाई का साहित्यिक परिचय लिखिए
- मीरा बाई का इतिहास
- मीराबाई की माता का नाम – विर कुमारी
- मीराबाई के गुरू का नाम- रविदास
जीवन परिचय- मीराबाई भक्त कवयित्री कहलाती है मीराबाई का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा है इनका जन्म सन 1498 ईस्वी में राजस्थान के जोधपुर के मेड़ता के पास चौकड़ी नामक गांव में हुआ था इनके पिता का नाम राठौर रत्नसिंह था मीराबाई की माता का निधन बचपन में ही हो गया था इसी कारण वहां अपने पितामह राव दूदा जी के साथ रहा करती थी
मीराबाई का जन्म कब हुआ था – 1498
Meera bai की रचनाओं में हृदय की अनुभूति होने के कारण इनकी रचनाएं सीधे हृदय को छू जाती है मीराबाई के पितामह राव दूदा जी कृष्णा भक्त होने के कारण मीरा के जीवन पर पर गहरा प्रभाव हुआ जिससे वह भगवान कृष्ण की भक्ति करने लगी मीरा का विवाह चित्तौड़ के राजा राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ कर दिया तथा विवाह के कुछ साल बाद उनके पति का देहांत हो गया जिससे मीराबाई के जीवन पर अत्यंत गहरा प्रभाव पड़ा इसी कारण उनके जीवन में विरक्ति का भाव उत्पन्न हो गया
मीराबाई का जीवन परिचय 2021
Meera bai राजमहल से निकलकर साधु सेवा में लीन हो गई तथा साधु संगीत में कृष्ण कीर्तन का गायन मंदिरों में करने लगी इसी कारण चित्तौड़ के राजा राणा सांगा ने मीराबाई का विरोध किया जिसके कारण मीराबाई कृष्ण की लीला भूमि मथुरा आ गई और वृंदावन में रहने लगी तथा वृंदावन में ही मीराबाई ने अपना पूरा जीवन व्यतीत किया
मीराबाई के काव्य की विशेषताएं
इस प्रकार मीराबाई का जीवन कृष्ण भक्ति में लीन था और वह कृष्ण की भक्ति में दीवानी हो गई थी संसार के दुखों से दूर मीराबाई का मूल आधार कृष्ण भक्ति ही था उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिन द्वारका में बिताए तथा भक्ति भावना में कृष्णमय हो गई और मीराबाई की मृत्यु सन 1546 ई. में हो गई थी
साहित्य सेवा- मीराबाई द्वारा लिखित काव्य साहित्य उनके ह्रदय की विरह वेदना के समान है तथा प्रेम का भक्ति भाव अत्यधिक है उन्होंने अपने साहित्य में भक्ति का आवरण तथा संगीत का माधुर्य पवित्रता और शुचिता के माध्यम से बताया है मीराबाई ने अपने मन के भाव को सीधे सरल एवं सहज पदों में अभिव्यक्त किया है इसी कारण मीराबाई का भक्ति मार्ग की शाखा में उत्कृष्ट स्थान है
मीराबाई की प्रमुख रचनाएं
रचनाएं – मीराबाई की रचनाओं में गीत गोविंद का टीका,राग गोविंद,राग सोरठा तथा नरसी जी का मायरा आदि रचनाएं प्रमुख है की उनकी रचनाओं में आराध्य श्री कृष्ण गिरधर गोपाल के प्रति प्रेम भाव संग्रहित है
उनकी रचनाओं में वियुक्त ह्रदय की अनुभूति दिखाई देती है मीराबाई द्वारा लिखित रचनाओं में माधुर्य तथा लालित्य भाव प्रधान है उन्होंने अपने पदों में रहस्यवाद को स्पष्ट रूप से दर्शाया है
भाव पक्ष– मीराबाई ने रस और माधुरी भाव को अपने साहित्य में अपनाया है उन्होंने भगवान कृष्ण की विरहा वेदना की तथा उन्होंने अपने आसूओ से प्रेम की बेला को सिंचा था मीराबाई ने भगवान कृष्ण के विरहा वेदना के बारे में जो कुछ बताया है उसकी तुलना अन्य किसी और से नहीं कर सकते हैं
मीरा विरहा वेदना अत्यधिक प्रभाव पूर्ण मानी जाती है उन्होंने अपने साहित्य में माधुर्य भाव को सबसे ऊंचे स्थान पर रखा है मीराबाई ने अपनी रचनाओ में माधुर्य भाव की प्रधानता तथा शांत रस व श्रृंगार रस को भी अपने पदों में व्यक्त किया है उन्होंने अपने रहस्यवाद में प्रियतम से मिलने का वियोग चित्रण किया है
मीराबाई की भाषा शैली
कला पक्ष- मीराबाई ने अपनी रचनाओं में ब्रजभाषा तथा काव्य भाषा का ही प्रयोग किया है उनकी भाषा राजस्थानी संस्कार से संयुक्त ब्रज भाषा कहलाती है मीराबाई ने कुछ रचनाओं में भोजपुरी शब्दों का भी प्रयोग किया है उनकी भाषा शुध्द साहित्यिक भाषा नहीं कहलाती है
मीरा बाई जनभाषा का भी प्रयोग अपनी रचनाओं में किया है मीराबाई के पदो में राजस्थानी शब्दो और उच्चारणो का भी प्रयोग मिलता है मीराबाई ने अपने पदो में मुक्तक तथा के गेय पद शैली को अपनाया है उनकी गीति शैली की प्रमुख विशेषता भाव संप्रेषणता कहलाती है
उन्होंने अपनी रचनाओं में अनुप्रास,उपमा,उत्प्रेक्षा,आदि अलंकारों का प्रयोग किया है
साहित्य में स्थान – मीरा ने अपने हृदय का चित्रण किया है और मीरा के हृदय में पीड़ा दुख तकलीफ वेदना आदि का वर्णन किया है और बड़े ही मार्मिक ढंग से बताया है मीराबाई का हिंदी साहित्य में विशिष्ट योगदान रहा है
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